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श्रु॒धी हवं॑ विपिपा॒नस्याद्रे॒र्बोधा॒ विप्र॒स्यार्च॑तो मनी॒षाम्। कृ॒ष्वा दुवां॒स्यन्त॑मा॒ सचे॒मा ॥४॥

English Transliteration

śrudhī havaṁ vipipānasyādrer bodhā viprasyārcato manīṣām | kṛṣvā duvāṁsy antamā sacemā ||

Pad Path

श्रु॒धि। हव॑म्। वि॒ऽपि॒पा॒नस्य॑। अद्रेः॑। बोध॑। विप्र॒स्य। अर्च॑तः। म॒नी॒षाम्। कृ॒ष्व। दुवां॑सि। अन्त॑मा। सचा॑। इ॒मा ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:22» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:5» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर पढ़ने-पढ़ानेवाले परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे परम विद्वान् ! आप (विपिपानस्य) विविध प्रकार के पीने जिस से बनें उस (अद्रेः) मेघ के समान (अर्चतः) सत्कार करते हुए (विप्रस्य) उत्तम बुद्धिवाले जन के (हवम्) शब्दसमूह को (श्रुधि) सुनो (मनीषाम्) उत्तम बुद्धि को (बोध) जानो और (इमा) इन (अन्तमा) समीपस्थ (दुवांसि) सेवनों को (सचा) सम्बन्ध करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे जिज्ञासु विद्यार्थी जनो ! तुम अपना पढ़ा हुआ परीक्षा लेनेवाले विद्वान् को सुनाओ, वहाँ वे जो उपदेश करें, उनका निरन्तर सेवन करो ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरध्यापकाऽध्येतारः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे परमविद्वँस्त्वं विपिपानस्याद्रेरिवार्चतो विप्रस्य हवं श्रुधि मनीषां बोधेमान्तमा दुवांसि सचा कृष्व ॥४॥

Word-Meaning: - (श्रुधि) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हवम्) शब्दसमूहम् (विपिपानस्य) विविधानि पानानि यस्मात् तस्य (अद्रेः) मेघस्येव (बोध) विजानीहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (विप्रस्य) मेधाविनः। (अर्चतः) सत्क्रियां कुर्वतः (मनीषाम्) प्रज्ञाम् (कृष्व) कुरुष्व। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (दुवांसि) परिचरणानि (अन्तमा) समीपस्थानि (सचा) सम्बन्धेन (इमा) इमानि ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे जिज्ञासवो ! यूयं स्वकीयं पठितं परीक्षकाय विदुषे श्रावयन्तु तत्र ते यदुपदिशेयुस्तानि सततं सेवध्वम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे जिज्ञासू विद्यार्थ्यांनो ! तुम्ही अध्ययन केलेले सर्व परीक्षक असलेल्या विद्वानांना ऐकवा व ते जो उपदेश करतात त्याचा निरंतर स्वीकार करा. ॥ ४ ॥